
सबक-ज़िन्दगी के:
अटकिये मत, सीखिए और आगे बढिये…
ज़िन्दगी सीखते जानें की एक सतत प्रक्रिया है।जीवन के अनुभव, उतार – चढ़ाव,अपनी भूलों,दूसरों की गलतियों, आपने आचरण,आपके साथ किये गए दूसरों के आचरण – व्यवहार,जीवन की तमाम परिस्थितियों का हम सभी पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हम अक्सर जीवन की इन परिस्थितियों पर एक ही दिशा में सोचतें चले जातें हैं, और कभी स्वयं को दुनिया का सबसे भाग्यहीन, अकेला और बेचारा इंसान मान लेते हैं,तो कभी दूसरे को दुनिया का सबसे स्वार्थी, धूर्त और बुरा व्यक्ति मान लेते हैं। दोनों ही परिस्थितियां अतिवादी हैं। दोनों ही परिस्थितियों में व्यक्ति आत्मकुंठा, हीनभावना, अहंकार,भय,असुरक्षा, अवसाद, निराशा और बदले की भावना के शिकार बनता है,किन्तु समाधान या आगे बढ़ने का कोई मार्ग दोनों ही परिस्थितियों में नहीं मिलता। बल्कि सालों बीत जाने पर भी हम कहीं अटके हुए,फँसे हुए से रह जाते हैं। उम्र गुजर जाती है, ज़िन्दगी 15 -20 वर्ष आगे बढ़ जाती है, जीवन की तमाम स्थितियां बदल चुकी होती हैं, रिश्तों का स्वरूप बदल जाता है, ऊपर से देखने पर हम भी बदल जाते हैं, पर भीतर ही भीतर हमारा मन जीवन के किसी कटु अनुभव प ही अटका रहता है। जीवन भर गाहे – बगाहे कटु यादों का पिटारा खोलकर बैठ जातें हैं।
मुझे लगता है अंहकार केवल खुद की खूबियों का,खुद की उपब्लधियों का नहीं होता!खुद को संसार का सबसे पीड़ित, प्रताड़ित,अभागा व्यक्ति मानना भी एक अंहकार ही है। बरसों पुराने कटु अनुभवों को जबरन सीने से लगाये रहना भी अंहकार ही है। असफलता के भय से सफलता के तमाम अवसरों, स्वार्थी रिश्तों से मिले अनुभवों के नाम पर तमाम भावनात्मक – खूबसूरत रिश्तों को भी ठेंगे पर रख देना अंहकार ही है! दूसरों के सफल – सुखी जीवन को देख अपने अतीत के दुखों को याद करना भी अंहकार ही है!
अतः जीवन के अनुभवों को महज सीखने का एक जरिया बनाइये।अपने प्रति दूसरों के व्यवहार पर सकारात्मक रूप से सोचिए, स्वयं के व्यवहार और आचरण पर भी आत्मचिंतन कीजिये, आत्ममंथन कीजिये! अपनी और दूसरों की गलतियों को,भूलों, दुर्व्यवहार को, छल कपट को अपराध बोध, हीनभाव या कुंठा में तब्दील होने से रोकिए, और आगे बढ़ते जाने, परिपक्व होने का साधन मात्र समझिए! जीवन के किसी एक अनुभव,एक हादसे पर ज़िन्दगी नहीं रुकती,हम ही अटक जाते हैं! यह हमारी कमजोरी है…. दोष भले हम दूसरों को दें! शायद इसीलिए संत कबीर दास ने कहा था
“बुरा जो देखन मैं चला,बुरा ना मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपणा,मुझसे बुरा न कोय।।”
डॉ.सुजाता मिश्र
सागर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
It challenges the way I am thinking through…..