काव्य भाषा : मेरे मनमीत-नीलम द्विवेदी रायपुर,छत्तीसगढ़

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मेरे मनमीत

चले आओ मेरे मनमीत, मन तुम बिन नहीं लगता,
तुम्हारे बिन गुलिस्तां में, कोई गुल भी नहीं खिलता।

तुम्हारे संग जो बीता था, वही पल सबसे सुंदर था,
समय बीता उमर बीती,मगर वो क्षण नहीं मिलता।

मेरे मनमीत तेरी बातों का, कुछ अंदाज़ ऐसा था,
अभी तक याद आती हैं, इक इक शब्द ऐसा था।

तेरी आवाज सन्नाटे में भी, मधुर संगीत बन गूंजा,
तन्हाई में भी तेरी प्रतिध्वनि,मेरा ये मन सुना करता।

जो मन को छूता रहा हर पल,वो अहसास जो मिलता,
मिटा दो प्यास आँखों की, हर आँसू में तू ही दिखता।

नीलम द्विवेदी
रायपुर,छत्तीसगढ़।

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