काव्य भाषा : नई फिजां -डॉ अखिलेश्वर तिवारी पटना

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नई फिजां

अब कुछ लोग ख्याली पुलाव पकाते रह जाएंगे।
नियति के कालचक्र को कभी नहीं बदल पाएंगे।
370 को फिर से लागू करने की अपनी मंशा को।
मन मे रखे रखे हीं यहाँ से वे रुख़सत हो जाएंगे।

उनका कहना है कि तिरंगा वो नहीं उठाएंगे।
जब वो उस लायक हीं नही रहेंगे तो क्या उठाएंगे।
दो तीन परिवार अब कभी मलाई नहीं खा पाएंगे।
370 की तरह ओ भी जल्द हीं खत्म हो जाएंगे।

मुल्क की अश्मिता से खिलवाड़ नही कर पाएंगे।
देखते हीं देखते वे सभी खाक में मिल जाएंगे।
आवाम के जेहन में नेतृत्व के लिए आग लगी है।
वादी के नये मौसम में नये नये फूल खिल जाएंगे।

नए पौध आने लग गए हैं फिजां जो बदल गई है।
वादी केशर की निकहत से मुअत्तर होने लग गई हैं।
टिमटिमाते दीपक की शमाँ अब बुझने लग गई है।
आफताब निकल रहा है अब सहर होने लग गई है।

डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी
पटना

1 COMMENT

  1. आज के परिवेश मे माँ भारती की सेवा के लिए इन पंक्तियों का विशेष महत्व है।बहुत उपयुक्त लाइनें!

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