काव्य भाषा : दुल्हन-नीलम द्विवेदी रायपुर ,छत्तीसगढ़

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दुल्हन

मेंहदी लगे हाथ में पी का नाम देख हर्षाती दुल्हन,
आँखों मे कितने रंग बिरंगे स्वप्न लिए आती दुल्हन।

बाबुल की गलियों की यादें दिल में भरकर लाती दुल्हन,
बचपन अठखेली भूल बेटी से नववधू बन जाती दुल्हन।

आलता लगे पैर से जब अन्न भरा कलश गिराती दुल्हन,
अन्नपूर्णा घर की बनने का मन में वचन दुहराती दुल्हन।

नववधु कोहबर में बैठे तो श्रद्धा के सुमन खिलाती दुल्हन,
हल्दी की थाप बना दीवारों में लक्ष्मी रूप बन जाती दुल्हन।

हर रीति रिवाज का पालन कर संस्कार निभाती दुल्हन,
हर सुख दुख में बढ़कर परिवार का साथ निभाती दुल्हन।

कभी जहेज की वेदी में चढ़कर जल जाती है दुल्हन,
उचित व्यवहार नहीं हो तो घुट कर रह जाती है दुल्हन।

नववधु को सोने चाँदी के पिंजरे जैसा न देना बँधन,
बेटी जैसा ही प्रेम दुलार घरवालों से माँगे है दुल्हन।

नीलम द्विवेदी
रायपुर ,छत्तीसगढ़।

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