काव्य भाषा : मन का रावण मारिये – चरनजीत सिंह कुकरेजा, भोपाल

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मन का रावण मारिये
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मन साँचा तो आएंगे, मन में सदविचार ।
गर फरेबी मन हुआ,नही होगा बेडा पार ।

मन माया के जाल में ,फड़फड़ाते लोग।
सहते अक्सर वेदना,ना बनते सुख के योग।

मनके फेरे रात दिन,पर ना मन को चैन ।
बिखरे मन को जोड़ने,कट गई सारी रैन ।

मन मंदिर ना हो सका,पूजे तीर्थ धाम ।
स्थिर मन को ही मिले,घर में अपने राम।

मन का रावण मारिये,करिये दोष संहार ।
भीतर लेंगे आपके,फिर श्री राम अवतार ।

काम क्रोध मद ईर्षा,रावण के हैं रूप।
वध इनका भी कीजिये,रखिये स्वच्छ स्वरूप।

राम चरित्र सा है अगर,पास आपके अंश।
चुभ न पाएंगे कभी,दुष्कर्मों के दंश।

महाज्ञानी का ना जीतिए, आप भले खिताब।
पर अवश्य ही बाँचिये, उपदेशों भरी किताब।

आओ हम इस पर्व पर,सबसे करें मिलाप।
धोएं मन की कलुषता,कर लें प्रेमालाप।

परस्पर दें शुभकामना,भूलें सारे द्वेष।
मन का रावण मार कर,पाक करें परिवेश।

चरनजीत सिंह कुकरेजा,
भोपाल

4 COMMENTS

  1. Very nice, sir ji.
    You have been expressed a superior idea to control “Man ka Rawan”.
    ?????????

  2. सभी हितैषियों का उत्साह वर्धन करने के लिए आभार

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