काव्य भाषा: माँ कात्यायनी -नीलम द्विवेदी रायपुर ,छत्तीसगढ़

286

Email

माँ कात्यायनी

माँ कात्यायनी नवदुर्गा का छठवां रूप बन कर,
ऋषि कात्यायन की भक्ति का वरदान बन कर,
कात्यायनी माता जन्मी आलौकिक रूप धरकर,
देवों को असुरों ने असहनीय कष्ट दिया जब,
विष्णु और महेश के शक्ति पुंज का मेल हुआ जब,
ज्वाला सी प्रगट हुईं महिषासुरमर्दिनी माता तब,
सभी देवताओं में अपने अस्त्र शस्त्र अर्पित किए,
माता से विनती की महिसासुर से मुक्ति दिलाएँ,
माँ सिंह पे सवार होकर चल पड़ीं युद्ध के लिए,
माँ ने दण्ड से सभी असुरों के सिर काट गिराए,
महिसासुर का किया अंत,महिषासुरमर्दिनी कहाई,
माँ की हुंकार मात्र से धूम्रविलोचन कण कण में बदला,
रक्तबीज और शुम्भ-निशुम्भ जैसे दैत्यों अंत किया,
माँ ने ये वरदान दिया,जब जब पाप बढ़ेगा जग में,
जब जब दुर्गा आएँगी, पापियों का विनाश करने,
माँ ही दुर्गा,माँ ही काली,भक्तों की करती रखवाली,
विंध्याचल के ऊंचे शिखरों में माँ का है निवास सदा,
माँ के सुंदर मुख मंडल में ममता का सागर दिखता,
माँ की आराधना से भक्तों को मनवाँछित वर मिलता,
हर विपदा से मुक्ति मिले जो कोई माँ का जप करता।

नीलम द्विवेदी
रायपुर ,छत्तीसगढ़

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here