काव्य भाषा : नारी रूप – डॉ ब्रज भूषण मिश्र भोपाल

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नारी रूप

किताब पढ़ते हो तुम
मुख देखा, पर पढ़ा नहीं
रूप में उलझते रहे
मेरी मूर्ति को गढ़ा नहीं

होठों में रस देखते
मेरी वाणी पढ़ते नहीं
नयन का सौंदर्य देखते
भाषा तुम समझते नहीं

मुझमें क्या क्या है,जानो
धैर्य,करुणा,समर्पण
सेवा,सहनशक्ति,क्षमा
ब्रज,संहारक भी मुझे जानो।

डॉ ब्रज भूषण मिश्र
भोपाल

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