

जिम्मेदारी किसकी?
आज घर के काम निपटाते हुए नेहा का मन नहीं लग रहा था।उसकी परेशानी काम के दौरान होने वाली उसकी झुंझलाहट से व्यक्त हो रही थी।
पति सुरेश बड़े ध्यान से इन सब बातों को देख रहा था।इससे पहले कभी नेहा को उसने इतना परेशान नहीं देखा था।पास जाकर उसने नेहा के हाथों को थाम धीमे और स्नेहपूर्ण शब्दों में उसकी परेशानी का कारण पूछा।अब तक अपने मन के भीतर दबी बात उसने सुरेश से कह दी,”आज सुबह दीदी का फ़ोन आया था।जीजाजी को कैंसर हुआ है और वे अस्पताल में भर्ती हैं।डॉक्टर ने टेस्ट करवाने तथा रिपोर्ट आने के बाद ऑपरेशन की बात कही है।अब दीदी अस्पताल में हैं जीजाजी के पास।उनकी बेटी घर में अकेली है।लॉकडाऊन के इस मुश्किल समय वह घर से ही ऑफिस का काम करती है।ऐसे में दीदी को उसकी चिंता सता रही है।बचपन में उन्होंने ही मुझे संभाला था।”रुआँसी होकर नेहा ने कहा।
“तो तुमने क्या सोचा है नेहा?”
सुरेश ने स्पष्ट प्रश्न पूछा तो नेहा एक बारगी सोच में पड़ गयी।फिर बूझे स्वर में कहा,”मेरा जाना तो संभव नहीं होगा।मेरे वहाँ जाने से आपको भी समस्याएँ आएँगी।आपका ध्यान कौन रखेगा?”
“और उस बच्ची का ध्यान कौन रखेगा?ऐसे वक्त में उसको संभालने की जिम्मेदारी किसकी है?”सुरेश ने फिर प्रश्न किया।
नेहा सिर झुकाकर खड़ी थी।अब क्या कहे?कुछ सूझ नहीं रहा था।ऐसे में सुरेश ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,”सुनो नेहा,आज उन्हें तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत है।अतः तुम्हें वहाँ जाना चाहिए।पहले दीदी ने तुम्हें संभाला था,अब यह सही मौका है,जब तुम उनकी बेटी की देखभाल करो।रही बात मेरी तो मैं अकेले कुछ दिन अकेले अपना गुजारा कर ही लूँगा।”
“तुम्हारी जिम्मेदारी केवल मुझतक ही नहीं उनके प्रति भी हैं,जो तुम्हारे अपने हैं।इसमें अगर मुझसे भी कोई सहयोग चाहिए तो मैं तैयार हूँ।”
नेहा की आँखों में खुशी के आँसू थे।सुबह से जिस बात के लिए वह इतनी परेशान थी,वह पति सुरेश की सूझ-बूझ से मिनटों में सुलझ गयी थी।
राजेश रघुवंशी,
मुम्बई।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
