काव्यभाषा : शब्द साधक की अभिलाषा -नवीन जोशी ‘नवल’,दिल्ली

179

Email

शब्द-साधक की अभिलाषा

शारदे माँ ज्ञान दें तो
एक पहल ऐसी करूंगा
‘शब्द’ की ही औषधि से,
कष्ट सब-जन के हरूँगा !!

फिर करूंगा साधना मैं
लोक के कल्याण हेतु,
दम्भ, ईर्ष्या, छल-कपट को
पास मैं आने न दूंगा !!

करूंगा करबद्ध होकर
भानु से बिनती निशा भर
और उनकी ज्योति को,
चिरकाल तक जाने न दूंगा !!

हर जतन ऐसा करूँगा
गुंथे जब तक हार सुन्दर,
तब तलक स्वच्छंद मन के,
फूल मुरझाने न दूंगा !!

नित नवल सुर-गीत से
गुणगान कर दूँ मातृभू का,
पश्चिमी दूषित पवन के
गीत मैं गाने न दूंगा !!

मुझे क्या है काम आखिर
चमचमाती रोशनी से,
टिमटिमाये दीप चाहे,
तिमिर को आने न दूंगा !!

नवीन जोशी ‘नवल’
बुराड़ी,दिल्ली

1 COMMENT

  1. रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार आदरणीय प्रधान संपादक श्रीमान देवेंद्र सोनी जी एवं समस्त टीम ‘युवा प्रवर्तक”?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here