काव्य भाषा : प्रकृति संग न हो खिलवाड़ – नीलम द्विवेदी रायपुर, छत्तीसगढ़

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प्रकृति संग न हो खिलवाड़

मानव जब मानवता को भूला, प्रकृति के संग किया खिलवाड़,
कोरोना जैसे दानव ने मुँह खोला, खतरे में सारा संसार पड़ा,
अब अपनों से छिपना पड़ता है,सबको छूने से बचना पड़ता है,
चेहरे को सभी छिपाते घूमें, मास्क लगाकर रहते हैं सब,
खुली हवा में मुश्किल जाना, फैला है विष चारों ओर,
धो धो कर हाथ मिटी रेखाएं,सूझे नहीं उपाय कुछ और,
उचित दूरियाँ और परहेज,बचने का बस एक ही ठौर
अदरक,काली मिर्च, तुलसी, इनका गर्म काढ़ा अब पीना,
अपनी जीवनशक्ति बड़ा कर,इस दानव को मिल के हराना,
साफ सफाई जीवन का हिस्सा, प्रकृति संग न हो खिलवाड़,
जितनी मौतें देख चूके हम,फिर कभी न ऐसा मंजर आये,
रुकती साँसों के सौदागर,अब तुमसे हम सब लड़ने आये,
दूर नहीं अब वो सुन्दर दिन,तेरा तोड़ जल्द बनके आये,
अब हम सब सतर्क रहेंगे, फिर कोई दुश्मन न तुझ सा आये।

नीलम द्विवेदी
रायपुर, छत्तीसगढ़

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