

ग़ज़ल
प्यार मेरा आजमा कर देख लो।
इक दफा मुझको बुला कर देख लो ।
रात ओ दिन जल रही शम्मे वफ़ा।
हो सके तो पास आकर देख लो।
खाक का इक ढेर हूं तुम बिन सनम ।
इक दफा आंखें उठाकर देख लो।
जोगने बन चुकी रातें दिन हुए बेनूर हैं।
और भी मुझको मिटा कर देख लो ।
अश्क सूखे आंख में अब लव सिले हैं।
रूह की चादर उठाकर देख लो।
वक्त कितना बेरहम था एक दिन।
दर्द के लम्हे छुपा कर देख लो ।
तेरे बिना बिल्कुल चला जाता नहीं।
फिर मुझे दिल से लगाकर देख लो।
तुम न आओ तो बुला लो यार मेरे।
सुष पुराने पल चुरा कर देख लो।
© सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
