

ख़ामोशी की स्याह रात में
ख़ामोशी दिल को दहलाती, सूनापन मन में भर जाती,
अव्यक्त मौन विचारों का, मन में संग्रह करती जाती।
ख़ामोश अधर में जो अटकी, आँखों की भाषा बन जाती,
और कोई जब नैन चुराता, आँसू बन कर ही बह जाती।
बेचैनी का छा जाता आलम, दिन क्या रात बीत न पाती,
सात सुरों की सारी सरगम, ख़ामोशी में गुम हो जाती ।
केवल धड़कन के स्पन्दन की, बस एक ध्वनि कानों में पड़ती,
ख़ामोशी कभी गहरे सागर में, ज्वार अनगिनत पैदा करती।
उर में ऐसा तूफान उठाती, मन की नाव डुबा ले जाती,
ख़ामोशी की चिंगारी, कोमल रिश्तों को राख कर जाती।
आज चलो शब्दों को जोड़, हृदयों के सेतु पुनः गढ़ते हैं,
ख़ामोशी की स्याह रात में, फिर तारों की चादर बुनते हैं।
जो ख़ामोशी अधरों में ठहरी, जमी हुई एक झील के जैसी, नैया की भी कहाँ जरूरत, संग चलकर पार उसे करते हैं।
ख़ामोशी की तोड़ बेड़ियाँ, प्रिय से अब मिलने जाते हैं ,
बहुत जी चुके ख़ामोशी, अब सुंदर गीतों में ढलने जाते हैं।
नीलम द्विवेदी
रायपुर , छत्तीसगढ़

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

Thank you so much.All the articles published in Yuva pravartak are very interesting and wonderful. Keep it up
Thanks to YuvaPravartak. Amazing e news paper. Articles published are very selective and wonderful.