
नदिया-किनारे
चलते चलो तुम
किनारे-किनारे।
बढ़ते चलो तुम
किनारे-किनारे।
नदियों से सीखो,
कैसे है बहना।
बीहड़ दुखों का,
कैसे है सहना।
बलखाती नदियों के-
समझो इशारे।
चलते चलो तुम,
किनारे-किनारे।
मकसद है इसका-
सागर में मिलना।
थकन चाहे कितनी,
सीखा न रुकना।
निरंतर ही बहते हैं,
नदियों के धारे ।
चलते चलो तुम,
किनारे-किनारे।
कोई मनचला इसमें,
कंकर उछाले।
कोई धोए मन के,
कलुषित से जाले।
अपनी छटा से,
प्रकृति निखारे ।
चलते चलो तुम,
किनारे-किनारे।
मस्ती में बहने दो,
नदियों का पानी।
रोको न इसकी,
कभी तुम रवानी।
गहराई में इसकी,
नभ के सितारे।
चलते चलो तुम,
किनारे-किनारे।
चरनजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
नदी के माध्यम से आध्यात्मिक चिंतन की ओर उन्मुख करती हुई बहुत ही सुन्दर एवं प्रशंसनीय काव्याभिव्यक्ति ।
यथा—-
गहराई में इसकी
नभ के सितारे ।
।चलते चलो तुम,
किनारे – किनारे ।