
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
जीवन में हम कई तरह की अच्छी वह बुरी परिस्थितियों का सामना करते हैं। कभी सुख ,कभी दुख, कभी हार, कभी जीत यह क्रम निरंतर चलता है। जब हम कभी हारते हैं तो निराशा घेर लेती है। पर हमें उस निराशा को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ना चाहिए। यदि हम निराशा को हावी होने देंगे, तो हमें असफलता से डर लगेगा। पहले ही हार मान ले लेने की आदत पड़ जाएगी। हमें यह सोचना चाहिए कि हार विकास की प्रक्रिया का ही हिस्सा है। हार के कारणों को जानकर उसमें सुधार करने से हम जीत सकते हैं। कोई भी व्यक्ति संपूर्ण नहीं होता। हमारे आसपास हम कई सफल लोगों के उदाहरण देखते हैं। हम उनकी सफलता तो देखते हैं पर उनके निरंतर किए गए प्रयासों को और परिश्रम को अनदेखा कर देते हैं। हारने के बाद भी प्रयास करते रहना चाहिए। यही सफलता की कुंजी है। जैसे कि थॉमस एडिसन बल्ब का आविष्कार करते समय कई बार विफल हुए, पर उन्होंने प्रयास करना नहीं छोड़ा और अंत में सफल हुए।
हमारी प्रकृति भी हमें निरंतर प्रयास करना सिखाती है। जैसे चींटी दाना लेकर चलती है तब कई बार गिरती है,फिर दाना उठाकर अपने स्थान तक पहुंचती है। पंछी भी अपने नीड का निर्माण करते समय एक एक तिनका चुनकर लाते हैं। कई बार तिनका गिर जाता है फिर उठाते हैं ,फिर उसे लगाने का प्रयत्न करते हैं। कई दिनों के परिश्रम और प्रयासों के बाद ही वे अपने नीड़ का निर्माण कर पाते हैं। अगर यह बात हम जीवन में उतारने ले की “मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत”। मन को सफलता और विफलता के जाल में ना फंसने देकर ,बस सीखने के लिए प्रेरित करते रहें तो हम हमेशा आगे बढ़ते रहेंगे और आनंद प्राप्त करेंगे।
मानवी सिंह तोमर,
इंदौर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत सुंदर भाव