काव्यभाषा : मैं मुझी तक सीमित नहीं हूँ -माही सिंह राजपुर

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मैं मुझी तक सीमित नहीं हूँ

इतनी दूर चलकर आई हूँ
अभी मंजिल को पाना है,
मैं मुझी तक सीमित नहीं हूँ
अभी शिखर तक जाना है…

दुनिया मेरे बस में नहीं
मैं स्वयं की आदी हूँ,
नाकामी की चोट पर मरहम
दहलीज लांघी आजादी हूँ…

ख्वाहिश बस इतनी सी
बदलना ये जमाना है,
हठ की दुनिया से बाहर
जीवन जीना सिखाना है…

इतनी दूर चलकर आई हूँ
अभी मंजिल को पाना है,
मैं मुझी तक सीमित नहीं हूँ
अभी शिखर तक जाना है..

माही सिंह
राजपुर

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