लघुकथा : प्रमोशन- राजेश रघुवंशी ,उल्लासनगर

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प्रमोशन

रिया ऑफिस से थक कर जब घर पहुँची तब भी चिंता की लकीरें उसके माथे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी।सामान्यतः वह सारी चिंताओं को भुलाकर घर आकर अपनी एकमात्र बेटी के साथ समय व्यतीत किया करती । पति देर रात ही घर आते। इसलिए भी बेटी के साथ रिया का संबंध एक सहेली की तरह भी था। दोनों ही एक-दूसरे से पूरे दिन की ढेरों बातें किया करते।
         रिया एक सरकारी दफ्तर में विभाग प्रमुख के रूप में कार्यरत थी। अपने आदर्शों और सिद्धान्तों के लिए जानी जाती थी। कोई गलत काम किसी आर्थिक लाभ के लिए कभी नहीं किया था उसने। फिर भी उसकी प्रमोशन की फ़ाइल आगे नहीं बढ़ रही थी। नियमों के हिसाब से ही उसे प्रमोशन मिलना था। इसका कारण भी वह अच्छी तरह जानती थी। कुछ महीने पहले ही रिक्त पदों की भर्ती हुई थी,जिसके चुनाव का अधिकार उसे सौंपा गया था। अनेक उम्मीदवारों ने पैसों,सिफारिशी पत्रों यहाँ तक की बड़े अधिकारियों के द्वारा रिया पर दबाव बनाने की भरसक कोशिशें की थी,लेकिन रिया ने उन पदों के लिए योग्य उम्मीदवारों का ही चयन किया था। वरिष्ठ अधिकारीगण नाराज थे। वे बस मौके की तलाश में ही थे। अब मौका उनके हाथ में था।
   रिया के पति भी अक्सर उसको दुनियादारी समझने की बात कहा करते थे। यह बात पता चलने पर निश्चित ही उसे ही दोषी मानेंगे। आर्थिक हानि जो होगी सो अलग। मन-ही-मन वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगी। थोड़ी देर में बाहर खेलने गयी बेटी जब घर आयी तो माँ को देखकर प्रसन्न हो उठी। बड़े प्यार से माँ के गले लग वह कहने लगी,”माँ,आज स्कूल में एग्जाम पेपर्स दिखाए गए। मैं प्रथम स्थान पर थी पर जब मैंने अपने पेपर्स  देखे तो पाया की एक पेपर में टीचर ने भूलवश गलत टोटलिंग कर दी है। अगर मैं टीचर को उनकी भूलवश की गयी गलती बता देती तो वे उसे सुधार देंती पर फिर मैं दूसरे नंबर पर आ जाती।समझ नहीं आ रहा था कि क्या करुँ?”
   रिया अपनी चिंता भूलकर एकटक बेटी को देखने लगी।अब उसकी उत्सुकता इस बात में थी कि बेटी ने क्या किया होगा? बेटी ने उसी सहजता से कहा,”माँ,मैंने तुरंत अपनी टीचर को सच बता दिया। टीचर ने मुझे शाबाशी भी दी। मैंने भी उस सहेली को बधाई दी। दूसरा नंबर ही सही पर वह मुझे मेरी मेहनत से मिला है,इस बात की बहुत खुशी हो रही है। मैंने ठीक किया न माँ?”
   हाँ मेरा बच्चा,तूने बहुत अच्छा किया। कहते हुए रिया को याद आया की उसका प्रमोशन तो उसके सामने हैं उसकी बेटी के रूप में।जीवन में संस्कार रूपी प्रमोशन सबसे महत्वपूर्ण है,जो मेरी बेटी में सहज ही आ गए। रिया ने अपनी बेटी को स्नेह से गले लगा लिया। अब किसी भी बात से रिया चिंतित नहीं थी।

राजेश रघुवंशी
उल्लासनगर

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