
संभाली वैसी ही जिन्दगी
आंखों की नमी में है जिन्दगी
खुश हैं हम,हमीं में है जिन्दगी
भूख के चूहे दौड़ मचाते पेट में
ऐसी ही खलबली में है जिन्दगी
चादर फटी और रही छोटी भी
इसी बेहतरी में कटी है जिन्दगी
चलते चलते भी मंजिल न मिली
एक मजबूरी में रही है जिन्दगी
हुस्न,इश्क,ख्वाहिश रहे स्वप्न से
इसी बेचारगी में रही है जिन्दगी
हैं क्षेत्र,वर्ग,जाति व भेद धर्म के
बेबसी में कट रही है जिन्दगी
हँसी, खुशी और जो हुआ सामना
ब्रज ने संभाली वैसी ही जिन्दगी
डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।