
सरकारें और संविधान की अवहेलना
हाल ही में कई राज्य की सरकारों ने अपने राज्य में केवल अपने ही राज्य के नागरिकों को रोजगार देने की घोषणा की है ।
जैसे – मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश
इन्हीं को देख कर अन्य राज्य भी ऐसे ही निर्णय ले सकते हैं। अब देखना ये है की क्या जो राज्य सरकारें कह रही है वो भारत जैसे एक विशाल संघी ढांचे वाले राज्य के लिए कहां तक प्रासंगिक है ।
भारत एक संघात्मक व्यवस्था वाला राज्य है जिसमें केन्द्र और राज्यों के समन्वय से शासन का संचालन होता है ।
ऐसे में अगर राज्य सरकारें केवल स्थानीय नागरिकों के लिए अपने- अपने राज्यों में सरकारी नौकरियाँ देंगी एवं अन्य राज्यों के नागरिकों को अपने राज्यों में सरकारी नौकरियाँ नहीं देगी तो ये ऐसे में संघीय ढांचे के अनुकूल नहीं होगा यह संविधान की अवहेलना होगी।
भारत में एकल नागरिकता का प्रवधान है। भारत के किसी भी राज्य का नागरिक सम्पूर्ण भारत का नागरिक होता है ।
राज्य सरकारों का ये निर्णय केवल संविधान के अनुच्छेद
(44) समान नागरिक संहिता के ही विरुद्ध नहीं है बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों के भी विरुद्ध है । अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार और अनुच्छेद 16 (1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर कि समता होगी ।
अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबन्ध में केवल धर्म, मूल वंश, जाती, लिंग, उद्भव, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के अधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न ही विभेद किया जायेगा।
अतः राज्य सरकारों का यह निर्णय संविधान की मूल भावना के विपरीत है ।
संविधान की गरिमा को कैसे भूला सकतीं है सरकारें।
विवेक हर्ष
गोरखपुर
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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।