काव्यभाषा : प्रेम -सत्यम सोलंकी पटना

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प्रेम

तुम्हारा होना जीवन में
बाढ़ के पानी में
सुखी भूमि का
मिल जाना है

तुमसे पहले
इतनी व्याकुलता थी
की अपनी हृदय का कम्पन भी
अप्रिय था

तुम्हारा होना
शून्य के होने जैसा है मेरे जीवन में
जहाँ तुम्हारा मुझसे जुड़ना
असंख्य बनता चला गया …

मैं बबूल था
जिससे लिपट पड़ी तुम
और असंख्य पीड़ाओं को सहकर
मुझे अपना प्रेम – चंदन बना दिया |

© सत्यम सोलंकी
पटना

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