
0 तरकश : पुण्य तिथि पर विशेष
नत्थूसिंह चौहान : विपिन परम्परा के गीतकार
– विनोद कुशवाहा
यूं तो इटारसी की हर गली में आपको कोई न कोई कवि मिल जाएगा लेकिन सही मायने में आप कवि कहेंगे किसे ? केवल तुकबंदी कर लेने मात्र से कोई कवि नहीं हो जाता । न ही कविता का व्याकरण समझ लेने भर से कोई कवि नहीं कहा जा सकता । … और मंचीय कवियों को तो मैंने कभी कवि माना ही नहीं । न ही उन कवियों को मैंने कभी सम्मान की दृष्टि से देखा जो कविता का व्यवसाय करते हैं । कविता की दुकान लगाते हैं । कविता बेचते हैं । या जो कविता की दलाली तक खाते हैं । एक कवि वह भी होता है जो इन सब विशेषताओं के साथ मंच पर झूमते हुए विदूषक की तरह प्रकट होता है और कविता के नाम पर चुटकुलेबाजी करते हुए मंच पर ही ढेर हो जाता है । मगर मम्मा नत्थू सिंह चौहान ने मंच पर जाने के बाद भी कभी न तो अपने उसूलों और आदर्शों के साथ समझौता किया , न ही कभी कविता की गरिमा के साथ कोई खिलवाड़ किया । उन्होंने हमेशा मंच की मर्यादा बनाकर रखी । मम्मा ही क्या उनके समकालीन सभी कवियों ने कविता और मंच का सम्मान बरकरार रखा । विपिन जोशी स्वयं भी मंचों पर आया – जाया करते थे ।
आज इस शहर की पहचान सिर्फ और सिर्फ विपिन जोशी से है । ‘ एक भारतीय आत्मा ‘ राष्ट्रीय कवि माखनलाल चतुर्वेदी ऐसे ही विपिन जी की सराहना नहीं करते थे । आज भी नवोदित कवि विपिन जी के काव्य संग्रह ‘ साधना के स्वर ‘ को ढूंढ कर पढ़ते हैं । आज भी विपिन जी की कवितायें दुष्यंत की कविताओं की तरह लोगों को कंठस्थ हैं । इसलिए इटारसी विपिन जोशी का शहर है किसी ऐरे – गैरे का शहर नहीं है । इटारसी का हर गीतकार विपिन जोशी की परंपरा का गीतकार है । इटारसी में नई कविता लिखने वाला हर कवि विपिन परम्परा का कवि है ।
स्व . विनय कुमार भारती , प्रेमशंकर जी दुबे , मम्मा नत्थू सिंह चौहान सौभाग्यशाली रहे कि उन्हें विपिन जी का सान्निध्य मिला । वे विपिन जी के साथ रहे । उन्हें सुना । समझा । जाना । … लेकिन विपिन जी को पहचाना केवल वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू करणसिंह जी तोमर ने । जिन्होंने विपिन जी को हमेशा के लिये इटारसी में बसा लिया । सहज , सरल , सौम्य विपिन जी ने भी हमेशा के लिए इटारसी को अपना बना लिया । स्व राजधर जैन , विपिन जोशी , नत्थू सिंह चौहान ने ‘ टैगोर क्लब ‘ के माध्यम से विविध साहित्यिक गतिविधियों को नए आयाम दिए । विपिन जी ‘ गांधी वाचनालय ‘ में ग्रन्थपाल थे तो उन दिनों वाचनालय भी साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र हुआ करता था ।
विपिन जी के जाने के बाद मम्मा ने नगर पालिका में रहते हुए इटारसी में कितने ही स्तरीय कवि – सम्मेलनों का आयोजन कराया । जिनमें देश के ख्याति प्राप्त कवियों ने शिरकत की । इस शहर को महादेवी वर्मा , डॉ रामकुमार वर्मा जैसे स्वनामधन्य साहित्यकारों का सम्मान करने का अवसर भी मम्मा के माध्यम से ही मिला ।
मम्मा नत्थूसिंह चौहान के अपने समकालीन साहित्यकारों से बहुत ही सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध थे जिसका लाभ इस शहर को निरन्तर मिलता रहा । अन्यथा कुछ साहित्यकार इस शहर में ऐसे भी हैं जो स्वयं के सम्बन्ध अपने तक ही सीमित रखते हैं । उनके संबंधों का लाभ न तो कभी इस शहर को मिला और न ही नगर की नवोदित पीढ़ी को । मम्मा जीवन की अंतिम सांस तक सक्रिय रह कर इस शहर के बारे में सोचते रहे । अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले ही उन्होंने वरिष्ठ साहित्यकार सी बी काब्जा , टी आर चोलकर आदि हम सबके सहयोग से ‘ इटारसी का इतिहास ‘ लिख डाला । इस उम्र में भी उनका उत्साह , उनकी ऊर्जा , उनकी भाग – दौड़ देखते ही बनती थी ।
उन्होंने इस शहर को जितना दिया उसका कोई हिसाब – किताब नहीं । इसका सिला उनको क्या मिला ? जिस नगरपालिका परिषद की उन्होंने जीवन भर सेवा की उसी नगरपालिका ने उनको जीवन के अंतिम चरण में उन्हें उनके सोना सांवरी नाके के निवास से निकाल बाहर किया । तब समाचार – पत्रों के माध्यम से इटारसी की साहित्यिक , सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओं ने स्थानीय प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित किया । सी बी काब्जा , डॉ कश्मीर सिंह उप्पल आदि हम सब तत्कालीन अध्यक्ष नीलम गांधी से भी मिले । इतनी उठा – पटक के बाद मम्मा को इंदिरा कॉलोनी में रहने के लिए छत नसीब हुई ।
नगरपालिका परिषद से तो बेहतर उनके वे साहित्यिक मित्र रहे जिन्होंने उनके जीवित रहते हुए ही उनका काव्य संग्रह ‘ दीप देहरी जलते जलते ‘ प्रकाशित कराया ।
आज जब हम उनकी पुण्य तिथि पर मम्मा नत्थूसिंह चौहान का स्मरण कर रहे हैं तो याद आ रही हैं वे घटनायें भी जिन्होंने उन्हें बेहद दुख पहुंचाया । मम्मा हम आपको कभी नहीं भूल पाएंगे । आप हमेशा याद रहेंगे । अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से रहा हूं जिन्हें आदरणीय मम्मा का सानिध्य प्राप्त हुआ है मैंने उनके साथ बैठकर कविताएं लिखना सीखा पढ़ा विनम्र श्रद्धांजलि
निश्चित ही स्व. नत्थू सिंह चौहान जी के गीत और उन्हें पढ़ने की शैली दिल छूने वाली थी। इटारसी मेंं साहित्यिक वातावरण निर्मित करने में चौहान जी का बड़ा योगदान है। उनकी स्मृति को नमन।
श्री नत्थु सिंह चौहान जी की स्म्रतियों को सादर नमन