

नील गगन
आज सोया था आँगन में
दृष्टि पड़ी नील गगन में।
चाँद – तारे ऐसे बिखरे मानो
पुष्प खिले हो बगियन में।
शशि की निर्मल चाँदनी
फैली थी भूमियन में।
ऐसा लगता वसुधा मानो
नहाई हो दुधियन में।
नक्षत्र अगणित बिखरे थे
गृह – ताड़ित सी चमकते थे।
भूमि तल निरखते मानो
दूरबीन लगे हो नैनन में।
श्वेत आभा शशि बिखेरती
परिधि फैली अनन्त में।
दोनो पाक्षिक घटते – बढ़ते
ज्यो लगे हो चिंतन में।
श्वेत अनुपम चन्द्र विशाल
गोल – मुख बने गगन में।
तरु सी फैली इंदू – अनन्त
नक्षत्र खिले हो डलियन में।
शशि- किरन उगती – डूबती
नित सेवा की मिशन में।
हृदय – हर ले जाते मानो
परी उतरती हो गगन से।
चन्द्रकान्त खुंटे
लोहर्सी,जांजगीर चाम्पा(छग)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
