
नशा
दुनिया से परेशान होकर
नशा करना सीखा
अब नशे से परेशान हैं।
हमारी प्रगति का ही
परिणाम है नशा/
नशे की चीजें,
पर चीजों को क्यों कोसते हैं
बनाने वालों को क्यों नहीं।
इस नशे से आदमी मरता है
कौन नहीं जानता
फिर भी नशे की चीजें
हर रोज आविष्कृत हो रही हैं/
क्या बनाने वाला नहीं जानता।
आदमी को मारने के लिए
आदमी इतना उतावला है
कि हर रोज नये हथियार
बना रहा है/
पलक झपकते पूरे देश
दुनिया को खत्म कर दे
ऐसे जैविक, अणु,परमाणु
हथियार बना रहा है,
क्योंकि दूसरे पर राज करना है
यह भूलकर कि
सारे आदमी मर जाएंगे
तो राज किस पर करेगा।
और फिर जीकर भी
क्या करेगा।
इसलिए अपने अंदर की
सच्चाई से भाग रहा है
उसका सामना करने का
साहस जो नहीं है
नशे की आड़ में
अपने को भुला रहा है।
और जब साहस
एकदम जबाव दे जाता है
तो मनुष्य का समूचा अस्तित्व
समाप्त हो जाता है
और एक नशीला व्यक्ति
खड़ा हो जाता है
अपने आप से दूर
बेहोश।
ऐसी बेहोशी जिसकी चिकित्सा नहीं
चिकित्सा रोग की होती है
पलायन की नहीं।
जिसे ठीक होना है
अपने आप से
दूर भागना बंद कर दे
रुक जाए/थम जाए
फिर अपने आपको देखे/परखे
किसी और को न देखे
सिर्फ
अपने आपको देखे
और फिर क्रांति
घटित होते देखे।
सत्येंद्र सिंह,
पुणे

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
सुंदर बहुत सुंदर समसामयिक रचना है श्री सत्येंद्र सिंह को हार्दिक बधाई
Bhout achha hai uncle 👍
Bhout Achha hai uncle
“चिकित्सा रोग की होती है, पलायन कि नहीं” बहुत करारी बात कही है। बधाई!👌
सर जी, नवेली चिजे और अणुबांब से, विध्वंस के परिणाम को जानते हुए भी दुनिया मे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करने मे स्पर्धा लगी है, आपने उसको अपने शब्दों में बहुत ही अच्छेसे व्यक्त किया है! बढीया
आज की पीडी़ न जाने कहां जा रही हैएक वो समय था कि नशे का नाम सुनकर कांपते थे आज बडे़ लोगों का शौक है नशा बहुत सुन्दर आपके लिए वधाई