
मेरे प्रेम पथिक बन कर
जब प्राण रहित जीवन हो जाए,
भावशून्य सा मन हो जाए,
श्रृंगार रहित ये तन हो जाए,
पुष्प रहित उपवन हो जाए,
जब सभी जलकलश रीते हो,
उर व्याकुलता से भर जाए,
वीणा के टूटे तार सभी,
सुर ताल रहित से हो जाएँ,
जब नेत्र अश्रु से बोझिल हो,
सपने भी बैरी हो जाएँ,
तुम नयनों में स्नेह सजल भरकर,
अधरों में मधुकलश भरकर,
साँसों में चन्दनवन भरकर,
बंसी की मधुर ध्वनि बनकर ,
सीपों से कुछ मोती चुनकर,
अंजुरी में यमुना जल लेकर,
मेरे मन का चातक प्यासा,
सदियों की प्यास बुझा जाना,
तुम मेरे प्रेम पथिक बनकर,
मुझको अब राह दिखा जाना,
मेरे मन के इस मंदिर में,
बसती इक मोहक मूरत है,
प्रेम पथिक बन कर मेरे,
उस सूरत से मिलवा जाना,
उपवन जो तुम बिन उजड़े हैं,
मधुवन बनने की आस लिए,
अंतर के सूने आँगन में,
कुछ प्रेम सुमन बिखरा जाना,
मैं राधा सी बाट जोहती हूँ,
मीरा सा मुझमे संयम है,
लेकिन अब थकती हैं आँखें,
कृष्ण रूप दिखला जाना,
इस जनम मरण के बंधन से,
अब मुझको मुक्त करा जाना,
अब तो प्रेम पथिक बनकर,
मेरे प्रियवर ! तुम आ जाना,
नीलम द्विवेदी
रायपुर छत्तीसगढ़

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।