
ज़ख़्म
मिटटी पे मेरे ज़ख्मो की ,हसीं लम्हे कहाँ सजते हैं
गीली पलकों की तराई पे ,ताज़े ख्वाब कहाँ रुकते हैं
बदहवास साँसों को सुकूं नहीं ,सीने की गहराई में
अपनों के नश्तर हर घडी ,जहाँ धड़कनो में चुभते हैं
मेजबान दिल बेबस मेरा ,दर्द मेहमाँ बना बैठा है
सन्नाटों के शोर यहाँ ,किसी तन्हाई में सिसकते हैं
राख़ फैली है फ़िज़ा में ,दम तोड़ चुके अरमानों की
ज़ीस्त के कुछ पन्ने इसकदर ,चुन चुन के जलते हैं
बेवफाई मुकद्दर की यारों ,भारी है अब भी साँसों पर
बेखबर ज़ज़्बात मेरे ,देख देख हाथ मलते रहते हैं
ऋचा गुप्ता नीर
आगरा

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
Bahut badhhiya khush raho
Very nice
वाह …. क्या बात .. 👍
Fabulous 👌