
ग़ज़ल
झील किनारे वाली बस्ती है इन आँखों में ।
जिंदगी महंगी सांसे सस्ती है इन आँखों में ।
फितरत ने आज फिर आजमाया है मुझे
वही खड़ी पुरानी हस्ती है इन आँखों में ।
बरसों पहले दिए घाव और कुछ निशानियां ,
यादों की तपिश दुरुस्ती है इन आँखों में ।
जुस्तजू मिटा ना सके चाहतों के ये पैमाने ,
कैद गुलिस्तां जैसी सुस्ती है इन आँखों में ।
यादों की धूल पट गई चारों और दीवारों पर
बेतकल्लुफ थोड़ी सरपरस्ती है इन आँखों में ।
ये कलम क्या ही लिखे अल्फाज़ो से दर्द मेरा ,
दिल और दिमाग की कुस्ती है इन आँखों में ।
पढ़ न सके मुझे तुम कभी तो बोल ही उठूंगा ,
निभाई क्या ही खाक दोस्ती है इन आँखों में ।
– राहुल वासुलकर
नागपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।