

नर-आदित्य
रोज होती
प्रातः
वैसे प्रारंभ होती जीवनगाथा।
कदम बढ़ाते उगता
सूरज लाल
वैसे होता जन्मकाल।
चढ़ते जाते जैसे
भानुष
बढ़ते जाते वैसे मानुष।
सिर पर आती
धूप खड़ी
नर में छाती यौवन बड़ी।
तुम जैसे ही
ढलते
उम्र वैसे क्षीण होते।
तेरी ढलने से
होते शाम
बुढ़ापा में तब लगते जाम।
मानव जीवन सा
तेरी घूर्णन
तेरी अस्त जीवन पूर्णन।
तुम हो शाश्वत
चिर स्थायी
मानव जीवन नश्वर है भाई।
जीवन देने में
तुम हो माहिर
जीवन हरने में नर जग-जाहिर।
तुम हो दानी
बड़े महान
जानता जिसको जग जहान।
तुमसे ही है
दुनिया रोशन
तुम नही करते हो शोषन।
स्वार्थ अहम
सब में छाया
नेकी करना तुमसे पाया।
मानुष गुण में
नाही बेस्ट
इस जग में तुम्ही श्रेष्ठ।
✍️✍️चन्द्रकांत खुंटे
लोहर्सी,जांजगीर चाम्पा(छग)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
