उसकी निकहत में
तेरी मुस्कुराहट पर लूट जाने को दिल करता है।
तेरे हीं तसव्वुर में रात बिताने को दिल करता है।
जिस दिन नहीं देख पाता हूँ तुम्हारी कोई तस्वीर।
उस दिन तड़प तड़प कर मर जाने को दिल करता है।
ये सच है कि तुम हुश्न की अभी भी मल्लिका हो।
वज्म में तुझे हीं गजल बनाने को दिल करता है।
जब शहर में तुम्हारा आशियाना रहता है जानम।
तेरे हीं कुर्बत में समय बिताने को दिल करता है।
हवा के झौके जब भी चलते हैं कभी हल्के हल्के।
तेरे उड़तेहुये गेसुओं में उलझ जानेको दिल करता है।
झील सी तेरी इन गहरी आँखों मे डूब चुके हैं लोग।
फिरभी पता नहीं क्यों इसमें डूबने का दिल करता है।
कौन सा चुम्बकीय आकर्षण है तेरी फ़िज़ाओं में।
उसकी निकहत में सराबोर होजाने को दिल करता है।
आप जब भी निकलते हैं आजकल शब में।
आपको देखकर चाँद को जल जानेको दिल करता है।
डॉ.अखिलेश्वर तिवारी
पटना
तसव्वुर-कल्पना, वज्म- सभा,कुर्बत- नजदीकी,
निकहत-गन्ध, स्वाद, शब-रात।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
नमस्कार। धन्यवाद सोनी साहब। आभार।