
इतना ना सताओ
किसी को इतना ना सताओ कि वो रो दे
तैस में आके कपड़े की तरह ना धो दे!
गुमान किस बात का करता है खाता वही रोटी
तु गरीब मजबूर की क्यों नोचता है बोटी।
ऐसा ना हो कि इंसानियत को तुम खो दो!
उसके घर में खाने को एक निवाला नहीं।
है वह बुद्धिजीवी कोई यह तो दीवाला नहीं
मारो ना इतना हक कहीं वो अपनों को खो दे!
इंसान होकर इंसानियत को समझो यारो
शैतान नियत हैवानियत को ना अपनओ यारों
कहीं मजबूर होकर अपनी जान ना खो दे!!
~ शैलेन्द्र
बढ़ियानी खुर्द, बसखारी
अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
आदरणीय संपादक जी आभार आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी