

मौन हूं अनभिज्ञ नहीं
देखती हूं चहुं ओर
संसार की भूलभुलैया को
कई रिश्तो से मिलती हूं
कुछ निश्च्छल, कुछ कृत्रिम
कुछ अनिवार्य , कुछ संवेदना के
कहां स्वार्थ है ,कहां ग्लानि है
कहां पीड़ा,और कहां याचना है कहां मिलेगा अवसाद
और कौन हैं सुह्रदय स्नेही
जानती हूं अनुभव करती हूं
मौन हूं अनभिज्ञ नहीं
जीवन पथ में आगे बढ़ती
दो कदम कभी पीछे हटती
थोड़ा ठहरती ,आत्मसात करती
टूटे विश्वास के टुकड़े समेटती
ये जानकर की फिर प्रहार होगा
मौन हूं अनभिज्ञ नहीं
अपनों द्वारा छली जाती
खोखले रिश्तो में अपनापन टटोलती
मुस्कुराहटें तौलती
मुखौंटो के पीछे झांकती
मौन हूं अनभिज्ञ नहीं
आर्त आत्मा को धैर्य सिखाती आस लगाते नैनो की पीर नापती
दृग जल का क्षार चखती
रूंधे गले की गूंज सुनती
मौन हूं अनभिज्ञ नहीं
आर्त आत्मा को धैर्य सिखाती आस लगाते नैनो की पीर नापती
दृग जल का क्षार चखती
रूंधे गले की गूंज सुनती
मौन हूं अनभिज्ञ नहीं
जानती हूं समझती हूं
आत्मसात करती हूं
तपती हूं, निखरती हूं
मन की टीस को
अनदेखा कर
मुस्काती मैं
मौन हूं अनभिज्ञ नहीं
डॉ संगीता तोमर
मौलिक व स्वरचित
इंदौर मध्यप्रदेश

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
