मंजिल_का_मुसाफ़िर
ऊँची है मंजिल,ऊँची है डगर,
चल मुसाफ़िर चल।
राहों में मिलेंगे
कही कंकड़ कही पत्थर।
तू मंजिल का है पथिक,
बढ़ा कदम
निकाल फेंक,अपने डर।
चल आगे बढ़,आगे बढ़।
जब सीने में है आग,
बहुत दूर जाना है,
चल भाग, चल भाग।
बाजुओं में है हिम्मत तेरी ,
मेहनत में ना कर देरी।
ऐसा वक्त ना मिलेगा फेरी,
मंजिल की गारंटी है मेरी।
पढ़ना तेरा कर्ज है,
बढ़ना तेरा फर्ज है।
हर बीमारी का मर्ज है,
मेरा भी क्षुद्र अर्ज है।
चल उठ,चक्षु खोल,जाग,
चल भाग,चल भाग।
जब तक सोते रहोगे,
तब तक खोते रहोगे।
जब तक मस्ती करोगे,
तब तक रोते रहोगे।
ऐसा सुनहरा पल ,
फिर ना आएगा कल।
चल उठ,गिर,सम्भल,
मंजिल पास होगी कल।
चल-चल,थोड़ी आग में जल।
सपने में नही होगा दम,
सफलता मिलेगा ही कम।
खुद पर हौसला रखोगे,
नया-नया इतिहास गढ़ोगे।
एकाग्र होकर पढ़ोगे,
कामयाबी का सोपान चढोगे।
करमो में नहीं होगा जान,
तो कैसे भर पाओगे उड़ान?
खुद का बढ़ाना है मान,
बिन सफलता न होगा सम्मान।
चल-चल लगा दे जान।
कर हौसला अफजाई ,
अब तेरी बारी आई।
छोड़ दे कंबल-रजाई,
गर्मी का मौसम है भाई।
चल उठ अब निकल ,
मंजिल पास होगी तेरी कल।
स्वयं को बनाना हो सफल,
ऐसा मौका मिलेगा न कल।
चल-भाग,चल-निकल,निकल।
जब खुद को अम्बेडकर ,
कलाम बनाना है।
तो हर पहर परिश्रम ,
करके दिखाना है।
खुद में जगाओ आस,
परीक्षा में होगे पास।
सफलता का राग अलाप,
बहुत दूर जाना है।
चल भाग,चल भाग।
–चन्द्रकांत खूंटे
लोहरसी जांजगीर चाम्पा(छग)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।