

ग़ज़ल
माना की रस्ते में पत्थर बहुत हैं
लोग हमसे भी बद्दतर बहुत हैं
कांच की है ये मेरे दिल की बस्ती
आईने के टूटने का डर बहुत हैं
बदलती रही है अब दुनियां मग़र
बस्ती में अब भी पुराने घर बहुत हैं
निगाहों से बचके प्यास बुझानी है
पर दरिया के पास लश्कर बहुत हैं
बाहर से चमकता है “सीरत” का दिल
दिल की सल्तनत में खंडर बहुत हैं ।
शीला गहलावत सीरत @
चण्ड़ीगढ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

बहुत बहुत शुक्रिया जी