
रक्षा बंधन
श्रावण मास की पूर्णिमा
मनाते है हम पर्व
“रक्षाबंधन”
जिसमे ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की है भावना
प्रत्येक बहन अपने भाई को
रक्षा का बंधन बांध
भूल जाती हर असुरक्षा को
काश यह भावना एक दिन सीमित नहीं होता
निर्भया कांड कभी नहीं होता
उन्नाव और कठुआ पूरे देश को नहीं झकझोरता
बहन-भाई के नाते में लौकिक बहन का रहता नाता
स्वाभाविक रूप से जो पवित्रता लिए रहता
बहन जब अपने लौकिक भाई की कलाई पर राखी बांधती
संकल्प देती है कि
भाई दुनिया की सभी नारियों को, कन्याओं को ऐसी ही नजर से निहारना
किसी भी महिला को अपनी अस्मिता एवं सम्मान के लिए न हो संघर्ष करना
रक्षाबंधन पर्व की सार्थकता बनाना और आदर्श राष्ट्र की परिभाषा बनाना
चलो रक्षा के बंधन के संकल्प को आगे है बढ़ाते
पर्यावरण को भी हम है बचाते
पेड़ पौधों को रक्षा के बंधन से है बाँधते
नदियों को प्रदूषित होने से बचाते
रक्षाबन्धन पर्व
सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का है सांस्कृतिक उपाय
चलो हम बताते
राजीव रंजन शुक्ल,
पटना ( बिहार)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत अच्छी कविता। पूरे सामाजिक परिवेश को दर्शाती हुई, रक्षासूत्र के बंधन की महत्ता को उजागर करती है ये रचना।
Rakshabandhan ki purnima.. Ki purn mahima.. 👌
अत्यंत सुंदर और अच्छी कविता।
बहुत शुभकामनाएं।