

कुछ ख़त्म होता नहीं
सब कहते हैं जो चला जाता वो लौटता नहीं ,
पर कुदरत कहती यहाँ कुछ ख़त्म होता नहीं….
जमीं से निकल कर जमीं होने तक के सफ़र में ,
परिवर्तन होते हैं नाना पर कुछ ख़त्म होता नहीं….
बीज से दरख़्त से फिर बीज बनने के सफ़र में ,
तना डाली पात फूल फल बनते कुछ ख़त्म होता नहीं….
नज़र से ओझल हो जाता है भौतिक शरीर मरण में ,
मूल चेतना फिर लेती नया रूप कुछ ख़त्म होता नहीं….
कैसे भी रहे हो कर्म विचार या व्यवहार जीवन में ,
जो बोया सो काटता है जीव कुछ ख़त्म होता नहीं….
ब्रह्म की भ्रम लीला है ये कालचक्र ज़िन्दगी में
जा कर लौटता हर स्वर नाद कुछ ख़त्म होता नहीं….
फँस के काम क्रोध मोह माया के भवसागर में ,
विनाश से भयभीत हैं,हक़ीक़त में कुछ ख़त्म होता नहीं….
कुन्ना चौधरी
जयपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

Thanks a lot ???
उत्कृष्ट रचना
बहुत सुंदर चौधरी जी। बधाई।