
कविता-
वह भी सोचता है?
क्या
सोचता है,
पद्-दलित
अपमानित
कुण्ठित हर आदमी ,
जो मैं
सोच रहा हूं ?
क्या
मेरी तरह
वो भी
जीवन को
आँसुओं से
डूबने से बचाना चाहता है ?
सहमी हुई
ज़िन्दगी को
भयभीत रातों से ,
सुबह
आँखों को
छलकते हुए आँसुओं से
छुटकारा चाहता है ?
क्या
मेरी तरह
वह भी
फुटपाथों पर
ज़िन्दगी गुजारने से
बचना चाहता है,
भूख के लिए
भूख से लड़कर
मरना नहीं चाहता है ?
क्या
मेरी तरह
वह भी
अपने हक लिए
संघर्ष की
राह अपनाना चाहता है,
दाने-दाने को
मोहताज बच्चों के लिए
हँसती-खेलती
ज़िन्दगी चाहता है ?
क्या
मेरी तरह
उनकी भी इच्छा है
ख़ुदकुशी न करने की,
सपनों को
खौफ़नाक संकटों से
बचाने की ?
क्या
वह भी
चाहता है
कि
उसका श्रम
गुलामी से मुक्त हो ,
उसके
काम की
मेहनत की पूरी-पूरी
पारिश्रमिकता मिल सके ?
उसके हाथ
पीठ और सिर
कभी बेगारी से बच सकें,
न ही
धनाढ्यों की
ज्यादती ही सह सके ?
–ओम प्रकाश अत्रि
शोध छात्र
विश्व भारती विश्वविद्यालय शान्तिनिकेतन (प. बंगाल)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
संघर्ष पूर्ण जीवन का चित्रण है कविता मेंं। कवि से भविष्य में और बेहतरी की उम्मीद है।