
ग़ज़ल
अगर- ये- इनायत -तुम्हारी- मिलेगी।
हमें -भी -खुशी -दस हजारी -मिलेगी।
हमारी ख़ता की मुआफ़ी करो- अब
हमें क्या- पता था -बिमारी- मिलेगी।
बहुत बढ़ चुका है सितम अब तुम्हारा
नज़र- क्यों -न गीली- हमारी-मिलेगी।
परेशां -सभी- है -अजब -ये– बिमारी
दुआएं- कभी -तो -तुम्हारी- मिलेगी
खड़ी- हाथ- जोड़े- कनक- द्वार -तेरे
दुआओं की बारिश भी प्यारी मिलेगी।
कल्याणी झा
राँची, झारखंड
मौलिक

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
बेहतरीन ग़ज़ल
Congratulations 💐💐
बहुत सुन्दर रचना