

पुस्तक समीक्षा
मन अदहन
“पारदर्शिता इतनी की दर्पण भी
दांतो तले उंगली दबा ले
सहजता ऐसी की मन को संग बहा ले
धरा , अंबर का अलौकिक मिलन हो ज्यो
शब्दों में अपना ही अक्स मुस्काय हौले हौले”
मैं क्या लिखूं ? सब कुछ तो आपने लिखा है। आत्मकथा भले ही स्वयं की हो परन्तु व्यक्तित्व की सुंदरता , व्यवहार की मोहकता बरबस ही अपने मोहपाश में बांध लेती है।
बेहद सौम्य , सजग एवं संतुलित भाषा का नवीन प्रयोग जो आपने किया है” मन अदहन” की कहानियों में , जिसके फलस्वरूप आपकी लेखनी सर्वगुण संपन्न सर्वग्राही बन कर उभरी है।
कहानीकार की भूमिका में मधु आप ज्यादातर गौण रही हैं। हो भी क्यूँ न मधु! “बड़ी आंखों वाली” वो लड़की हम सबको कहानियों में रमा देखकर कर टुकुर – टुकुर निहार रही है। होठों पर मनमोहक मुस्कान लिए निश्छलता से शब्दों में पुचकार रही है। बेहद आकर्षक रूप में कहानी लेखन की जादुई कला की धनी हो मधु आप ।
आपने क्या खूबसूरत चित्र उकेरा है। ” हमारी शादी” का एलबम बड़ा ही सुंदर सजाया है। पढ़ते वक्त पल भर को आंखों को भान ही न रहा कि ये मेरी नहीं है। कल्पित भाव सदैव सुंदर होते है , यहाँ तो आपने यथार्थ को भी रंग बिरंगा परिधान पहना दिया। रिश्तों को पहली बार यूँ निहारा की दांपत्य जीवन की तू – तू , मैं -मैं की मिठास गुड़ की डली सी जुबान पर घुलती गयी।
कान्हा की “पतंगबाजी” के करतब अभी मन को लुभा ही रहे थे कि मधु आपने जादू की छड़ी घुमायी और हमें बचपन की गलियों में ले आयी। हमनें भी खूब आनंद लिए बड़े होकर बच्चे बनने का मधुर एहसास क्या होता है ये अब जाना।
पतंगबाजों की टोली में कब शामिल हुई मैं और मैं मेरे सपनों ने उड़ान भरी ख्याल तो तब आया जब बगुलों की घर वापसी का समय आया। हमनें भी वो लोकोक्ति पुनः दुहरायी
“बगुला – बगुला दान दे
चिनिया बादाम दे”
बाद उसके अपने नाखूनों को निहारा खजाना पा लेने की खुशी हुयी। बड़ा रोमांचक सफर रहा मधु आपके संग साथ बचपन के गलियारों का।
कहानिया क्रमवार चल रही थी तभी “मेरी झिल्ली” का दर्दनाक दृश्य आंखों में समुद्र छोड़ गया। जीवन की कर्मठता भी मृत्यु की भयावहता से भय खाती है। कृषक जीवन उसपर गरीबी और लाचारी के कोड़े कमर ही नहीं जिजीविषा को ही तोड़ कर रख देते हैं। शायद किस्मत भी तभी कसूरवार होती है जब इंसान परिस्थितियों के प्रतिकूल होने पर भी जीने की ललक रखता है।
आज प्रगति आधुनिकता का पर्याय समझा जाता है , ऐसे परिवेश में ” गाँव की ओर” अग्रसर होना सुखद रहा। वो गाँव की पगडंडियों पर चलते हुए लोगों का हाल समाचार पूछ कर अपनत्व जताना , वो मिट्टी की सोंधी खुश्बू , बोलचाल की गवई भाषा की मिठास सब मैं समेट लायी और यादों की आलमारी में सहेज कर रख लिया। मधु आपकी सहयात्री होना लाभदायी रहा।
गैजेट्स के जमाने में टचस्क्रीन मोबाइल की अनोखी दुनिया और टीवी पर “बेबी दीदी की शादी” देखने का खतरा मोल लेना वाकई सबके बस की बात नहीं। ये असंभव कार्य भी आपने पूर्णमनोयोग से सम्पन्न किया।
खतरों के खिलाड़ी की हौसला आफजाई तो बनती है न।
अब जन्नत की सैर की बारी है। “अम्मा की खाट” ही वो उड़नखटोला है मधु जिसपर अधिकारवश हम सभी सवार हो गए। उन अनमोल पलों में मेरी दादी माँ ने मुझे भी ढेर सारी कहानियां सुनायी। कभी बालों में तेल चुपड़ लाड़ लड़ाया तो कभी मीठी झिड़की देकर हमारी शैतानियां झेली। ये वो वक्त है जब अम्मा की सूती साड़ी की महक में सारा जहाँ भूल कर मधु आप और मैं बेसुध खोए रहे।
संगीता सहाय “अनुभूति”
रांची झारखंड

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

बहुत सुंदर समीक्षा।