
माँ
माँ मैं कब बड़ी हो गयी ,मुझे पता नही चला,
जब मैं रोती थी,तू मझको आँचल में छुपा लेती थी,
दूध पिलाकर मुझे सीने से लगा लेती थी,
घुटनो से जब मैं चल कर आऊँ
मुझे उठा गोद मे उठा कर चुम लेती थी,
जब डरती थी और सोती नही थी
मुझे रोली गा गा अपने सीने से लगा कर सुला लेती थी,
जब रोती थी स्कूल नही जाऊँगी
तू मुझको ज्ञान भर कर बाटती थी,
तू मुझको स्कूल, कॉलेज का महत्व बताती थी,
पढ़ लिखकर डॉक्टर बनूँ यह सिखाती थी
मेरे मना करने पर जब तू मेरा विवाह तय की
तो तू मझको घर गृहस्थी के बारे में बताती थी,
माँ मैं कब बड़ी हो गयी मुझको पता नही चला,,,,।।
अर्पणा दुबे
अनूपपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
एक माँ के सामने ही हम बूढ़े होकर भी बच्चे ही रहते हैं,बहुत खूबसूरत लेखन💐