

0 नागरिक पत्रकारिता
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आम नागरिक लॉक डाउन के खिलाफ नहीं
– विनोद कुशवाहा
विरोध लॉक डाउन का नहीं था । विरोध अचानक लॉक डाउन लगाए जाने की घोषणा का था और वह भी अनाधिकृत व्यक्ति / व्यापारी द्वारा लॉक डाउन घोषित किये जाने का । इस पर भी आम नागरिक मात्र एक दिन की समय सीमा दिए जाने के खिलाफ था । सिर्फ इस वजह से ही पिछले दिनों इटारसी में अफरा – तफरी का आलम देखने में आया था क्योंकि तब अखबारों ने भी लॉक डाउन के समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया था । इधर स्थानीय प्रशासन आंख मूंदे बैठे रहा । या यूं कहिए कि गहरी नींद सोता रहा । किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति ने उपरोक्त घोषणा या समाचार का खंडन करने की जरूरत नहीं समझी । जब तक खंडन आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।
गत् दिनों स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव मो. सुलेमान ने इंदौर में कोरोना के संदर्भ में समीक्षा बैठक ली । बैठक में उपस्थित अधिकारियों से उन्होंने स्पष्ट कहा है कि – ” इंदौर में 7 दिन से सौ से एक सौ पच्चीस मरीज प्रतिदिन आ रहे हैं । यदि ये चार सौ मरीज प्रतिदिन भी हो जायें तब भी लॉक डाउन नहीं होगा क्योंकि अस्पतालों में पर्याप्त व्यवस्था है । ” मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जनता के नाम दिए गए संदेश में यह माना है कि – ” लॉक डाउन हमेशा नहीं चल सकता । गतिविधियां जारी रखनी पड़ती हैं पर नागरिक भी अपनी जिम्मेदारी समझें । ”
व्यवस्था तो इटारसी में भी पर्याप्त है मगर यहां कौन सा इलाज किया जा रहा है । अस्पताल में आने वाले मरीज को या तो होशंगाबाद के जिला अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है या फिर हमीदिया हॉस्पिटल भेज दिया जाता है ।
स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव फैज अहमद किदवई तथा कोरोना के संभाग प्रभारी प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई अपने दौरे के बाद जिले की व्यवस्थाओं से असन्तुष्ट होकर वापस लौटे हैं । दोनों ही अधिकारियों ने इटारसी अस्पताल का भी भ्रमण किया था। भ्रमण के दौरान अधिकारी द्वय ने डॉ श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल के अधीक्षक डॉ ए के शिवानी एवं स्थानीय प्रशासन को कोरोना पॉजिटिव के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के तत्काल सैम्पल लेने हेतु सख्त निर्देश भी दिये थे लेकिन बावजूद इसके इतने महत्वपूर्ण कार्य ने गति नहीं पकड़ी ।
प्रदेश के जिला अस्पतालों की स्थिति कौन सी अच्छी है । गुना जिले में सुनील धाकड़ को लेकर उसकी पत्नी 12 घन्टे तक जिला अस्पताल के बाहर पेड़ के नीचे बैठी रही परन्तु सुनील का पर्चा तक नहीं बना । अंततः उसकी मौत हो गई । सुनील धाकड़ की पत्नी अपने बच्चे को गोद में लिये रोती बिलखती रही मगर अस्पताल के किसी भी कर्मचारी का दिल नहीं पसीजा । इस बीच वह काउंटर तक भी कई बार गई लेकिन वहां उससे पैसे मांगे जाते तो वह वापस आकर जमीन पर पड़े अपने पति के पास बैठ जाती थी । अब जबकि दर्द से तड़पते सुनील धाकड़ की मृत्यु हो गई तब कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने जांच के आदेश दिये हैं । राघौगढ़ के रईस खान इस पूरे घटना क्रम के साक्षी हैं ।
इस तथ्य से कोई इन्कार नहीं कि लॉक डाउन करना जरूरी है मगर पहले उसके लिए आवश्यक तैयारी कर ली जानी चाहिये । अन्यथा ऐसे में रोज कमा कर रोज खाने वाला आम आदमी बेबस , लाचार ,असहाय हो जाता है । इस शहर का लाइन में खड़ा अंतिम व्यक्ति तो मात्र गुरुद्वारे के लंगर पर निर्भर था । उससे भी उसके मुंह का निबाला छीन लिया गया । मतलब मुफ्त भोजन वितरण पर भी पाबंदी । प्रशासन को इससे ज्यादा ही तकलीफ हो रही थी तो वह खुद अपनी देखरेख में सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखते हुए मुफ्त भोजन वितरण कराए । प्रशासन की अपनी कोई व्यवस्था तो रहती नहीं है पर गरीबों को कहीं से दो जून की रोटी का जुगाड़ हो रहा है तो उसमें भी अधिकारियों के पेट में दर्द होने लगता है । हां प्रशासन को इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जरुरतमंदों के लिए की जाने वाली मुफ्त भोजन व्यवस्था हेतु एकत्रित की जाने वाली राशि का सदुपयोग हो । ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा अन्यथा ‘ राजद्रोह ‘ का प्रकरण दर्ज करा दिया जाएगा । ये तो अच्छा हुआ कि मैं समय पर सेवा निवृत्त हो गया अन्यथा अब तक या तो निलंबित करा दिया जाता या फिर मेरा स्थानांतरण हो जाता । हां मेरी पत्नी अवश्य शासकीय सेवा में हैं । प्रशासन चाहे तो बदले की भावना से उनके विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है । हालांकि वह भी सम्भव नहीं क्योंकि सितंबर में उनकी भी सेवा निवृत्ति है । बावजूद इस सबके मैं अपने आप को कभी लिखने से नहीं रोक पाया । न मुझे कोई रोक पायेगा ।
मुझे याद है कांग्रेस शासन में एक रसूखदार अल्पसंख्यक नेता अपने कारिंदों से कहता था ‘ यार पता लगाओ ये विनोद कुशवाहा नौकरी कहां करता है ‘। ये वही नेताजी हैं जो कभी कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहते हैं तो कभी विधायक की टिकिट के लिये अपनी दावेदारी ठोंक देते हैं जबकि पार्टी उन्हें किसी योग्य नहीं समझती क्योंकि उनका कोई जनाधार तो है नहीं न ही उनमें संगठनात्मक योग्यता है । खैर । एक बार वे अकस्मात् मुझे जय स्तम्भ पर टकरा गए । सहपाठी रहे हैं इसलिये उनसे खरी-खरी बोलने का हक़ भी रखता हूं । मैंने उनसे कहा – ‘ यार मुझसे ही पूछ लिया होता कि मैं कहां नौकरी करता हूं और कहां मेरी शिकायत करना चाहिये । ‘ उन्होंने कहा – ‘ आपको गलतफहमी हुई है । ऐसी कोई बात नहीं है । ‘ बाद में उन्होंने अपने आका मानक अग्रवाल तक मेरी शिकायत पहुंचा दी । कलेक्टर , बैतूल से लेकर मुख्यमंत्री तक मेरी शिकायत की गई । परिणामस्वरूप मुझे कुछ दिन के लिए झाबुआ की हवा जरूर खानी पड़ी लेकिन मैं अपनी दम पर मात्र तीन माह में इंदौर होते हुए लौट आया । वे ठगे से देखते रह गए । हालांकि मैं चाहता तो माननीय न्यायालय से ‘ स्टे आर्डर ‘ भी ला सकता था मगर मैंने सोचा एक बार इनके मन की भी हो जाने दो तो इन्हें भी चैन मिल जाएगा । साथ ही इनकी नेतागिरी के अहं को संतुष्टि भी मिलेगी । ऐसे ही नेताओं और उनके आकाओं के कारण आज कांग्रेस गर्त में है ।
फिलहाल इतना ही कि प्रशासन या शासन को यदि लॉक डाउन घोषित करना आवश्यक लगता ही है तो आम जनता को इसकी पूर्व तैयारी के लिए कम से कम तीन दिन का समय देना चाहिए । अन्यथा इटारसी के नागरिक अपनी पीठ मजबूत कर लें । पुलिस के डंडे खाने के लिए ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

इटारसी के जनमानस की परेशानी और तकलीफ की सटीक जानकारी दी गई है इसके पहले भी आपने इटारसी के जनमानस की परेशानी के विषयों में लिखा है लेकिन शासन और प्रशासन की तरफ से इसका कोई निराकरण नहीं किया गया
शहर की सही स्थिति प्रस्तुत करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं
जन जागरूकता के लिए आपके विचार अति उत्तम है। लोक कल्याण आपकी रग रग में भरा भाई साहब। आपको साधुवाद।