

समीक्षा
दर्द की एक गाथा (कहानी संग्रह),
संपादन एवं अनुवाद – देवी नागरानी,
प्रकाशक- हिन्दी साहित्य निकेतन,
16,साहित्य विहार,बिजनौर
इस कहानी संग्रह कि विशेषता यह है कि,श्रीमती देवी नागरानी जी द्वारा अनुवादित सिंधी भाषा कि सत्रह कहानियों का हिंदी में अनुवाद हम पाठकों के लिये उपलब्ध हो गया है।
यह कहानियां हमारे आज के जीवन की वास्तविकता से जुड़ी है।सभी कहानियों में आज के समय के पारिवारिक बदलाव, बुजुर्गों के प्रति लापरवाही नजर आती है जिसका जिक्र पहली कहानी ‘हसरतों का खून’ में मिलता है।
गरीबी और मासूमियत के बीच समझदारी का अहसास ‘ख़ुशबू और रोशनी’ कहानी में स्पष्ट होता है। इस कहानी में शबाना जैसी कम उम्र बच्ची की शख्सियत को सहजता से उजागर किया है।
स्कूलों में अध्यापिकाओं का संघर्ष किन किन बातों को लेकर होता है, यह अनुभव सबको पता होगा भी या नही लेकिन यह सच इस कहानी में है। इस कहानी संग्रह कि शीर्षक कहानी ‘दर्द की एक गाथा’ में यहां ममता और फर्ज का तानाबाना अजीबोगरीब तरिके से बुना है।
‘सूअर का बच्चा’ गंभीर कहानी है, भिखारियों की असहायता पर लिखी यह कहानी मानवाधिकार को कचोटती है। इस कहानी में स्त्री के दर्द का, उसकी ममता का दर्शन दिल को झंझोड़ जाता है।
‘कोख’ भावनात्मक चढाव उतार के बीच, प्रेम और ममता को बल देती मां- बेटी और परिवार की कहानी है। परिपक्व प्रेम की परिभाषा इस कहानी में ध्वनित होती है।
‘नई ऋतु’ अलग अंदाज में बदलते दुनिया की विडंबना बयान करती है। संवादात्मक शैली का प्रयोग नकली दुनिया का अधूरापन दर्शाता है।
‘भाग्य में लिखा न था’ जहां बेटियों का सौदा होता है, उनके भाग्य की कहानी जो अजीब कश्मकश से गुजरती है। उनकी जीवन नैया को बहती धारा किनारे पर नही तो भंवर में छोड देती हैं।
‘पक्षी उसकी आंखों…’ बहुत दिलचस्प कहानी है। जिसमें नायिका का पक्षी प्रेम एक आकर्षण बिंदु बनाकर, आजादी से जुड़े उसके चयन को चित्रित किया है। सभी मर्यादा के पर्दे बेनकाब करती कहानी है।
‘मंजरी कोलहण’ दलित, शोषित स्त्री की निर्भीडता दर्शाती कहानी है। स्त्री शोषण का दर्द झेलते हुये, एक कदम आगे चलकर बदला लेती है। अपने मर्द को नकारकर पसंदीदा मर्द से संबंध बनाकर, वह भी खुलेआम कबूल कर देती है। भविष्य में क्या हो सकता है, इसकी एक पहल भी इस कहानी को कहा जा सकता है।
‘संगमरमर और…’ कहानी जीवन के खोज में उभरती पीडा और व्यर्थता कि हकीकत बयान करती है।
‘जहाज’ कहानी स्त्री पुरूष नाते का भावनात्मक जुडाव, ओहदा – पेशा सब को अलग थलग कर रिश्तों के पेंच खोलती है।
‘बारूद कहानी, ठुमरी गायिका चंपाबाई को रक्कासा बनानेवाले पुरूष प्रधान व्यवस्था के क्रूरता कि हकीकत है।
‘पीड़ा मेरी ज़िंदगी’ कलाकार की हसरतें, पूर्ण-अपूर्ण के बीच झूलती है। प्यार में तृप्ति भी है और अतृप्ति भी। सुंदर शब्द शैली में बंधी कहानी रोचक लगती है।
‘कर्ज की दरख़्वास्त’ सरकारी दफ्तरों में होनेवाली बेपरवाह यंत्रणा में बेबस होनेवाले मुलाजिमों की दास्तां है। बहुत गहराई, पीडा को अंकित करती वास्तव को पकड़ करनेवाली शैली।
‘तड़ीपार’ बहुत नुकीले दर्द कि दास्तां लगती है। विभाजन के बाद अपनी संपत्ति, पुश्तैनी जायदाद छोड़ जान की सलामती के लिये सिंध प्रांत से निकले हुये सिंधी जनों के अपमान, घुटन से परिचय कराती है।
‘ग़ैरतमंद’ कहानी स्त्री के लिए बनाये दायरे से पहचान कराती है।कासिम अपनी भौजाई किसी मर्द के साथ बात करती है देख, उसका कत्ल कर देता है। जब बाढ में सब गंवाकर अपनी मौसी के पास जाता है तो अंत में बेरोजगारी से तंग आकर मौसी जो लडकियों को लेकर जिस्मफरोशी का काम करती है, उसी धंधे में उसकी बीबी ज़रीना को लगाने के लिए राजी हो जाता है। उसकी मर्दानगी बीबी को जिस्मफरोशी के धंधे से बचा नहीं सकी। यह आज के समय में मार्मिक कहानी है।
‘डासिंग गर्ल’ एक अद्भुत कहानी है। माया का प्रेमी गोवर्धन जो माया की बीमारी के कारण मौत के बाद, उसकी वसियत के अनुसार मोहनजोदड़ों कि जमीन पर उसकी रक्षा फैलाने की इच्छा पूर्ण करता है। वहां गोवर्धन प्रेम की अद्भुत शक्ति से परिचित हो जाता है। ‘संबारा’जो मोहनजोदड़ों कि प्राचीन पांच हजार पुरानी नायिका थी, उसके अहसास का अनुभव करता है।
सभी कहानियों में जीवन से जुड़ा संघर्ष, विस्थापन कि कसक, प्रेम, व्यावसायिक कश्मकश जैसे विषयों पर आधारित है। सभी कहानियों का अनुवाद अत्युत्तम श्रेणी का है। यह कहानियां अनुवाद के बाद भी सिंध, पाकिस्तान कि संस्कृति कि खुशबू अपने साथ लिये है। आम भारतीयों को यह अपनी बात कहनेवाली कहानियां जरूर लग सकती है। सुंदर आवरण तथा मुखपृष्ठ से सजी प्रसन्नता देती किताब, सबको नया अनुभव देने कि क्षमता रखती है।
द्वारा – डॉ.लतिका जाधव, पुणे
Email – latajadhav47@gmail.com

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

बढ़िया समीक्षा । संक्षिप्त समीक्षा ही साहित्य की महत्ता है ।
धन्यवाद!
बहुत सुंदर। बहुत बहुत धन्यवाद सोनी जी। बहुत अच्छी समीक्षा की गई है।
संपादक,
श्री. सोनी जी,
बहुत बहुत आभार।
बहुत ही सूक्ष्म और सटीक विश्लेषण। अभिनंदन लतिका जी
कम शब्दों में पुस्तक का सार।
सटीक समीक्षा लतिका जी! बहुत ख़ूब! बधाई एवं अभिनंदन।
वाह बहुत ही बढ़िया समीक्षा की,नमन??
लतिका जी
सिन्धी कहानियों के अनुवाद पर आपजी लिखी समीक्षा आपकी कलम की विशेषता है
तके दिल से धन्यवाद
आपका और समापक की का भी