
फूल से खुशबू कभी जुदा नहीं होती।
पाकीज़गी प्यार की बेखुदा नहीं होती ।
है अगर कशिशे मोहब्बत रूह की।
तो बाखूदा ये गुमशुदा नहीं होती।
जंग ए उल्फत में अगर हार हो मुमकिन।
इससे बेहतर तो इश्क की अदा नहीं होती ।
प्यार की राह में अगर मौत भी आए ।
इससे प्यारी तो यार की कदा नहीं होती ।
फूल से खुशबू कभी जुदा नहीं होती ।
पाकीज़गी प्यार की बेखुदा नहीं होती ।
हो हासिले इश्क ,नहीं मुमकिन हरदम ।
सुलह जज्बात से करके संभल जा ऐ ! दिल।
टूटते दिल में वैसे भी कोई सदा नहीं होती।
फूल से खुशबू कभी जुदा नहीं होती ।
पाकीज़गी की प्यार की बेख़ुदा नहीं होती ।
© सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।