
कैसे गाएँ गीत मल्हार
हृदय की व्यथा कहे
विषाद में डूबे गहरे बादल
उमड़ घुमड़ बरसे बादल
ऐसे बरसे जैसे रोए ममता
अपने होनहार कि छाती पर
घर -बार ,आंगन, मुस्कान
सब बहा ले जाए ये सैलाब
कैसे गाएँ गीत मल्हार
बाहर पड़ती फुहारों को
टकटकी लगाए खिड़की से ताकता बचपन
बीती ऋतु को याद करता
दूर खड़ा मदमस्त बचपन
ना छप- छप की आवाज़ है आई
ना कागज़ की नाव चलाई
नन्हीं कली बरखा में भी कुम्हलाई
कैसे गाएँ गीत मल्हार
बाबुल का आंगन है सूना
खाली पड़ा सावन का झूला
ना हरी लहरिया चुनरी सजाई
ना स्वप्नों की पींगे बढ़ाई
बाट जोहती है मेरी माई
ना सखियों संग हंसी ठिठोली
खाली है खुशियों की झोली
कैसे गाएँ गीत मल्हार
बरखा में भीगे ना मन
गीली दूब पर सूखा मन
अंखियों की बौछारों से पलके भीग जाए
जब नयना प्रिय के दरस को तरस जाएं
यादों की सौंधी खुशबू से तन मन भीग जाए पर
क्षुधा शांत ना होअंतर्मन की
कैसे गाएँ गीत मल्हार
डॉ संगीता तोमर
मौलिक व स्वरचित
इंदौर मध्यप्रदेश

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत सुंदर डॉ तोमर। बधाई।