

आज माँ के चेहरे पर एक सुकून देखा,
अदा नमाज़ और क़ुबूल दुआ हो गई ! -1
तेरे पड़ोस में कल, भूखा था कोई सोया,
क्या जाना तूने पढ़के अख़बार तू बता ! -2
झपक दे वो पलकें तो वक़्त रुक जाये,
सारा आलम सिमट आये मेरी पनाहों में ! -3
ऐ यार, ज़रा अहिस्ता ले चल मेरी मय्यत,
मेरे क़ातिल की ग़म-गुसारी तो अभी बाक़ी है ! -4
दरिया जो इश्क़ का है, डूबे ही तो मज़ा है,
जा कर के क्या मिलेगा उस पार तू बता ! -5
ऐ यार, ज़रा अहिस्ता ले चल मेरी मय्यत,
मेरे क़ातिल की ग़म-गुसारी तो अभी बाक़ी है ! -6
तू नुमाईश न कर अपने दिल के टुकड़ों की,
टूटी-फूटी चीज़ों के तो दाम बदल जाते हैं ! -7
जगा करते थे रातों को, गिना करते थे हम तारे,
तेरे ही इश्क़ ने हमको अजब कसरत में डाला था ! -8
ज़िन्दगी सो कर गुज़ार दें, जो तेरा ख़्वाब मिले,
ख़्वाबों ही में मुकम्मल कुछ ख़्वाब हुआ करते हैं ! -9
मतलबी रिश्तेदारों से तो वो अजनबी बेहतर,
मोहब्बत जहाँ से मिल जाये अपने घर जैसी ! -10
©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार
स0स0-9231/2017

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
