
विवशता
श्रीराम निवारिया
पाँवों के कागज पर
छालों के शब्दों से
लिख रहे
जीने की कविता
रोटी की स्याही
कई-कई कोस चलने के बाद
जब डाल देता है कोई
हमारी जिजीविषा की कलम में
तब कुछ कोस और फुदकने का
जोश और ललक ऊग आती है
सैकड़ों कोसों का सफर
और पेट भूखा
आशंकाओं से आच्छादित आसमान
सिर पर रखी गठरी
गोद में दुधमुँहा मजदूर
जिसे तुम्हारी आकांक्षाओं के लिए
पाल रहे हैं हम
यह कोई दृश्य नहीं
विवशता के; रस, छंद, अलँकार हैं
ऐसे शब्द, ऐसी कविता
फुदकने की ललक का व्याकरण
किसी अष्टाध्यायी में खोजने की
कोशिश मत करना
यह कविता इसी संसार के ही छापेखाने में
जिसे तुम्हीं ने बनाया है
छप रही है प्रमाण पत्र की तरह
लाखों मजबूर-मजदूर अतिथियों के द्वारा
चुनावी मुहाने पर
एन वक्त प्रदान किए जायेंगे जो,
महत्वाकांक्षियों को
पाँव के कागज पर; छालों के शब्दों में,
लिखे गए प्रमाण पत्र।
ई मेल-shriramnivariya@yahoo.in

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत सुंदर निवारिया जी।
धन्यवाद सत्येन्द्र जी।