
जीवन कहानी
फूट फूट कर रो रही मानवता
सिसक उठा ह्रदय पृथ्वी का,
अश्रुओं से हो बोझिल,बह चली एक सरिता।
न जन्म सफल न मरण हुआ,
जीवन बस एक संदर्भ हुआ।
लिख बैठा एक कहानी ,
बस अर्थ (धन)की लोलुपता।।
जन्म लिया मानव तन पाया,
खेलकूद में समय बिताया।
आयी जवानी,लालच आया,
धोखा,स्वार्थ ,मैं की रह गयी बस सत्ता।।
देख बुढ़ापा,मन घबराया,
संचित धन भी काम न आया।
रोगों ने तन को घर बनाया,
खत्म हुई जीवन की रोचकता।।
नव जीवन,नव कली खिली,
जिंदगी फिर से बह चली।
जन्म मरण का चक्र यही,
है काल की यही निरंतरता।।
पृथ्वी घूम रही अपनी धुरी पर,
सूर्य की किरणें फिर पड़ी पृथ्वी पर।
दिन के बाद रात,रात से फिर दिन,
संस्कारों पर टिकी मानव जीवन की चंचलता।।
– गीतांजली वार्ष्णेय
“सूर्यान्जली”
टीप : कृपया अपना सम्पर्क सूत्र भी लिखिए।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।