
“नवगीत”
पथ पर ऐसे बेसुध चलता…
पथ पर बेसुध ऐसे चलता,
मानो समय का मारा हो।
कठिनाई को दरकिनार कर,
केवल जीत ही प्यारा हो।।
रोजी-रोटी सब कुछ छीना,
गांव वापसी की मजबूरी।
साधन कोई तो मिल जाता,
कट जाता जितनी हो दूरी।
भूख पीड़ा और बेकारी,
हौसला सभी से हारा हो।।
महामारी का डर न व्यापे,
पेट की आग सही न जाये।
घड़ियाली आंसू रो शासन,
अपनी करनी सभी छिपाये।
पेट-पीठ सब समतल कर के,
अपना जीवन तक वारा हो।।
हर काम के सृजनकर्ता अब,
अब हफ्तों तक आराम करें।
दफ्तर,खाने सब बंद पड़े,
श्रमिकों का काम तमाम करें।
घर लौटना सबको जरूरी,
और नहीं कोई चारा हो।।
जिस हाथ से शहर संवारा,
वही मुसीबत सिर आन पड़ा।
भूखमरी औ बेकारी से,
सभी परिवार बेजान खड़ा।
राहत की कोई खबर नहीं,
विपदा का बहुत दुलारा हो।।
गोवर्धन प्रसाद सूर्यवंशी
जांजगीर (छ.ग.)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।