काव्य भाषा : अल्फ़ाज़ -फिरोज़ खान अल्फ़ाज़ नागपुर

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अल्फ़ाज़

उसकी हद क्या है, ये तो है उसकी मर्ज़ी,
आप तो अपनी हद से गुज़र करके देखिये !

इश्क़ मंज़िल की नहीं सफ़र की कहानी है,
अंजाम से बेफ़िक्र ये सफ़र करके देखिये ! -1

तू दे सके तो मुझको, कुछ वक़्त दे दिया कर,
सस्ती सी ज़िन्दगी में महंगाई ढूंढता हूँ ! -2

अक्सर वो मुझे छू के चला जाता है वापस,
उस आवारा लहर का तो किनारा मैं नहीं हूँ ! -3

उसके नाम की पर्देदारी तो अभी बाक़ी है,
इश्क़ की कुछ ज़िम्मेदारी तो अभी बाक़ी है ! -4

मज़मून जिनका दिल से, मिटता नहीं मिटाए,
तेरे उन ही ख़तों को जला करके रो लिए ! -5

जिस्मों की तो आदत है, मिल करके बिछड़ जाना,
तुम मिलना तो ऐसे मिलना कि रूह में उतर जाना ! -6

©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार

स0स0-9231/2017

2 COMMENTS

  1. आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं

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