

लघुकथा
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मूर्तित स्वप्न
द्रोणाचार्य कुछ सोचते हुए से चले जा रहे थे।
आज सुबह की राजकीय। चर्चा में अन्धे राजा नें उन्हें शासकीय उथल पुथल के स्पष्ट संकेत दिए थे। राजा के अनुसार सत्ता पर अधिकार के प्रलोभन में राजवंशों के मध्य पड़ती और बढ़ती खाई के कारण निरन्तर संघर्ष का वातावरण तैयार होता दिखाई दे रहा था।
द्रोणाचार्य अपने प्रिय शिष्य की भविष्य में सत्ता पर अधिकार के प्रति अपने उत्तरदायित्व को लेकर चिंतित थे।
तभी उन्हें सामने रेलवे ट्रेक पर कुछ खून से सनी रोटियां, टूटी चप्पलें, कटे फटे हुए कपड़े दिखाई दिए।
यह प्रवासी मजदूरों का एक काफिला था जो घर लौटते हुए रात के अंधेरे में ट्रेन से बुरी तरह कुचला गया था।
उन्होंने पॉकेट से मोबाईल निकाल कर सभी कोण से उनकी फोटोज उतार ली एवं मीडिया हाऊस की तरफ अपनी गति मोड़ ली।
अब वे अर्जुन की सत्तानशीनी पर आश्वस्त होकर मुस्कुरा रहे थे। उन्हें एक नहीं कई एकलव्यों के अंगूठे एक साथ जो मिल गए थे।
कनक हरलालका
असम

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
