
गुरूपोर्णिमा
पढ़-लिखकर शिक्षित होकर सारी खुशिया है पाई।
मत भूलना गुरू ने ही”श्री” लिखने की शुरूआत थी कराई।।
बडे़ होकर जब शिष्य जीवन में सफल हो जाते है।
तब गुरू, शिष्य की सफलता में खुद को सफल पाते है।।
मुझ पर मेरे गुरु का करम कुछ ऐसा था।
लाख असफलताएँ पाकर भी सफल होने जैसा था।।
गुरू ने ही कराई अक्षरो-किताबो से पहचान।
उनके कर्मो से ही आज सफल है,नही भूल सकते गुरू के एहसान।।
गुरू बिन कौन सिखाये ज्ञान,
गुरुबिन कौन कराये किताबो से पहचान।
सफल होकर आज हर मुकाम पा लिया है,
वरना गुरूबिन रह जाते हम खुदसे ही अंन्जान।।
हर शिष्य पर अपने गुरू का कर्जा है,
गुरू के एहसान भूलने पर जीवन एक सजा है।
लाखों के चेक पर करते है आज हस्ताक्षर,
यह भी गुरू के दिए ज्ञान का ही नतीजा है।।
शिक्षित कराके गुरु सफल होने का तरिका सिखाते है।
अरसा बीत जानेपर भी गुरू, शिष्य से नाता निभाते है।।
@ गायत्री शर्मा”चेतना”
नागपूर
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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।