काव्य भाषा : वीरान शहर – शिरीष पाठक

Email

वीरान शहर

तुम्हारे जाने के बाद
शहर कुछ वीरान हो जाता है
किसी पुराने से घाट पर अकेले लौट आने पर

चहचहाना थम जाता है
उन पंछियों का
मानो उन्हें भी एहसास हो गया हो
तुम्हारे दूर हो जाने का

लहरें वापस लौट गई होती है
सिर्फ निशान छोड़ कर
उन ऊंचे पत्थरों पर
ताकि फिर कुछ नया लिख सको उनपर तुम

चमकता हुआ आसमान काला पड़ जाता है
और फिर ज़ोर से बरसने लगता है
ताकि तुम्हारे साथ होने का एहसास बना रहे
कुछ देर और

तुम्हारी मुस्कुराती हुई आवाज़
अचानक ही सुन लेता हूँ इस शोर में
क्योंकि दूर होने के बाद भी
एहसास तुम मेरे साथ ही छोड़ दिया करती हो

शिरीष पाठक

    आवश्यक सूचना

    कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया लिखिए तथा शेयर कीजिए।

    इस तरह भेजें प्रकाशन सामग्री

    अब समाचार,रचनाएँ और फोटो दिए गए प्रारूप के माध्यम से ही भेजना होगा तभी उनका प्रकाशन होगा।
    प्रारूप के लिए -हमारे मीनू बोर्ड पर अपलोड लिंक दिया गया है। देखें तथा उसमें ही पोस्ट करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here