विविध : मूलार्थ खो बैठे ये बेचारे शब्द -राजेंद्र वामन काटदरे , ठाणे

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मूलार्थ खो बैठे ये बेचारे शब्द

यूं तो शब्द विशेष का एक ही अर्थ होता है मगर हरेक भाषा में कुछ शब्द ऐसे जरूर होते हैं जिनका प्रयोग अलग अलग जगह पर अलग अलग ढंग से किया जा सकता है और उसका अर्थ भी उसके प्रयोग के अनुसार भिन्न भिन्न हो सकता है । हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी तो इतनी संपन्न, इतनी अलंकारिक है कि इसका भाषा सौष्ठव देखते ही बनता है । उदाहरणार्थ यमक अलंकार को देखे कि कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, इसमें पहला कनक सोना है और दूसरे कनक का अर्थ धतूरा है, जिससे नशा होता है । इसी प्रकार सजना है मुझे सजना के लिये, गीत में पहला सजना अर्थात संवरना, मेकअप करना है तो दूसरा सजना पतिदेव के लिए है । कनक और सजना तो ऐसे शब्द हैं जिनके दोनों अर्थ हमें ज्ञात हैं ।
अंग्रेजी में डेजर्ट एक ऐसा ही शब्द है जिसका एक अर्थ रेगिस्तान है तो दूसरा अर्थ कुछ मीठा जिसे खाना खाने के साथ या बाद खाया जाए । लेकिन हिन्दी सहित हरेक भाषा में कुछ शब्द बेचारे ऐसे भी हैं जिनका समयांतर में अर्थ ही बदल गया है या कहा जाए की अर्थ का अनर्थ हो गया है हालांकि इसमें उन बेचारे शब्दों का क्या कसूर ।
अब देखिये ना कि बुद्धीजीवी कितना भला, कितना आकर्षक शब्द था । बुद्धीजीवी कहते ही किसी न किसी विद्वान का चेहरा निश्चित ही सामने धूम जाता था । तीसेक साल पहले जब मेरी कविताएं – लघुकथाएं नियमित छपने लगी तब मेरे मित्रगण मुझे चिकोटी काटने लगे की हम तो श्रमजीवी रह गए लेकिन तू बुद्धीजीवी हो गया है । उस वक्त बड़ा भला लगता था मगर पिछले पांच-सात सालों में बुद्धीजीवी शब्द का अर्थ ही बदल गया है अब बुद्धीजीवी यानि मौजूदा सरकर का विरोध चिट्ठीयां लिखकर करने वाला हो गया है ।
इसी प्रकार भक्त शब्द सुनते ही सबसे पहले भक्त प्रल्हाद याद आते हैं जिनकी कहानी हमने-आपने बचपन में सुनी ही होगी मगर अब भक्त कहते ही एक राजनितीक दल विशेष के समर्थक याद आते हैं । इसी प्रकार चमचा शब्द का अर्थ अपने बॉस को या अधिकारीयों को मस्का लगाने वाला हुआ करता था मगर अब इस शब्द की कॉपीराईट भी एक दल विशेष के पास है व उसके समर्थक अब चमचे कहलाते हैं ।
अगर आप एक विश्वविध्यालय विशेष के छात्र हैं या रह चुके हैं तो आप माने न माने आप टुकड़े होंगे गैंग के सदस्य हैं । देशद्रोही शब्द का सीधा सा एक ही अर्थ था जो देश से द्रोह करे वह देशद्रोही मगर अब मौजुदा सरकार के किसी निर्णय का विरोध करने मात्र से आप देशद्रोहीयों की श्रेणी में आपने आप जा बैठते हैं ।
पप्पू घर के किसी बच्चे को प्यार से लाड़ से बुलाये जाने वाला संज्ञा वाचक शब्द था मगर अब……
हालांकि इस सब में इन बेचारे शब्दों का कोई दोष या कसूर नहीं है लेकिन यह इनकी नियती है जो ये बेचारे अपना मूलार्थ ही खो बैठे । अब ज्यादा क्या कहें इसके सिवाय कि ईश्वर इन शब्दों की आत्मा को शांति प्रदान करे ।
ताजा कलम : पिछले कुछ सालों में कुछ शब्दों ने अपने अर्थ खोए जरूर हैं मगर कुछ नए शब्द भी इस दौरान गढ़े गए हैं जैसे वॉट्सएप्पिये या फेसबुकिये और फेसबुक पर टैग करने की सुविधा का दुरूपयोग करने वाले अब कहलाते हैं टैगिये । इसी के साथ पिछले चार-पांच महिनों में यानि करोना के आगमन के पश्चात् मास्क, क्वारंटाईन, सोशल डिस्टंसिंग, सेनेटाईजर जैसे अंग्रेजी शब्द भी आम हो गए हैं ।

राजेंद्र वामन काटदरे
ठाणे वेस्ट 400607

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